धन की कमी हरित आधारभूत ढांचे के विकास का सबसे बड़ा रोड़ा है

द्वतीय विश्व युद्ध के बाद जो बड़े स्तर की औद्योगिक क्रांति हुई है उसके फलस्वरूप धरती के वातावरण में आमूल चूल परिवर्तन आए। आगे चलकर हम लोगों के लालच और स्वार्थ के कारण आज हालत ऐसे हो चले हैं कि हर तरफ प्रदूषण के अलावा धरती के बढ़ते तापमान के कारण इस गृह पर जीवन के अस्तित्व तक को खतरा पैदा हो गया है। आपाधापी में लगे हम लोग चारों तरफ मंडराते खतरों को अनदेखा कर रहे हैं। अभी तुर्कीए और सीरिया में जो भूकंप आया उसके बारे में वैज्ञानिक वर्षों से चेतावनी दे रहे थे। पर क्या उनको सुना गया ? धन, सत्ता और लोभ के पीछे भागते लाखों जीवन तबाह हो गए, एक दो सप्ताह चर्चाएं रही और फिर बस जिसकी जो त्रासदी है वह भोगे। वैश्विक बंधुत्व एक अति अल्पकालीन जीवन वाली प्रतिक्रिया से ज्यादा कुछ नहीं है। परंतु अब तो बात सबके अस्तित्व की है क्योंकि अगला महा विनाश यदि आएगा तो शायद कुछ भी न बचे। महा विनाश या प्रलय की आशंका आदि काल से बनी रही है जिसको अधिकतर धर्म आधारित कल्पनाओं में ईश्वरीय विधान माना गया है। ये सब धारणाएं तथ्यों पर आधारित नहीं हैं महज कलोल कल्पनाएं हैं परंतु सामने पड़े तथ्य जिसमें स्पष्ट तौर पर मनुष्य की नासमझी नजर आ रहीं है उसे सब अनदेखा कर रहे हैं। मनुष्य धरती का सबसे विनाशकारी जीव रहा है जिसने सदैव अपनी प्रकृतिप्रदत्त शक्तियों का दुरुपयोग इसी प्रकृति को नष्ट करने में किया है। एक तरह से मनुष्य जाति का एक बड़ा वर्ग मातृहंता बन गया है। वातावरण और प्रकृति विनाश को रोकना अब आसान काम नही रह गया है क्योंकि इस कार्य को फलीभूत करने के लिए अब बड़े धन की आवश्यकता है जिसकी प्राप्ति कठिन होती जा रही है। पश्चिम के देश अरबों डॉलर रूस यूक्रेन युद्ध में अरबों डॉलर बर्बाद कर सकते हैं पर वातावरण संरक्षण का नाम आते ही कोविड महामारी और अन्य कितने ही बहाने सामने आ जाते हैं। पूरब के देश आर्थिक कठिनाइयों की बातें करने लगते हैं पर वातावरण की बर्बादी से भी बाज नहीं आ रहे हैं। विकास के नाम पर वातावरण विनाश द्रुत गति से जारी है क्योंकि भोग विलास को ही विकास मान लिया गया है। दुनियां में यदि हरित आधारभूत ढांचा विकसित करना है तो अगले कुछ दशकों में बड़ा खर्चा करना पड़ेगा परंतु आज की विषम परिस्थितियों में किसी भी सरकार की ऐसी आर्थिक क्षमता नहीं रही है। ऐसे में व्यक्तिगत निवेश की जरूरत आ पड़ी है परंतु ऐसा होने के लिए दो बातों की होना जरूरी है। पहले तो बड़े स्तर पर व्यक्तिगत बचत होनी चाहिए जो महंगाई के इस दौर में संभव नहीं लग रही है। दूसरे, व्यक्तिगत निवेश, जोकि प्राइवेट संस्थाओं द्वारा कहीं पर उपयोग लिया जाता है, के द्वारा मुनाफा भी होना चाहिए। यदि निवेशित धन के वापस आने की संभावनाएं घट जाएंगी तो कोई भी संस्था उस क्षैत्र के लिए धन नहीं देगी। निवेश में जब तक बैंक या मुद्रास्फीति दर से ज्यादा कमाई नहीं होगी तब तक कोई भी पूंजी किसी क्षैत्र में जाती नहीं है। राजनीतिक अस्थिरता या सत्ता में बदलाव की संभावना के चलते भी कोई बड़ा निवेश किसी भी देश में होता नहीं है। ऐसे में एक विश्व स्तर का सर्वमान्य समझौता और नियम बनना चाहिए ताकि पर्यावरण से संबंधित योजनाओं में स्वीकृति के बाद न तो कोई रुकावट आए और ना ही उसके धन प्रवाह पर रोक लगे। पब्लिक प्राइवेट सहयोग के बिना कोई भी हरित योजना सफल नहीं हो सकती इसलिए इस क्षैत्र में कई तरह के वित्तीय तरीके अपनाने पड़ेंगे। यह सब करना आसान नहीं है पर संभव है। चूंकि इस समय हम हरित परिवर्तन के पहले दौर में है तो कई दुविधा वाली स्थितियां आयेंगी जिन्हे बड़ा तूल देने की आदत से बचना चाहिए। आज की परिस्थियों में हमें विरोधाभाषी स्थितियों से गुजरना ही पड़ेगा। पर्यावरण को बचाने के अभियान में अभी कई ऐसे कार्यों को भी करना पड़ सकता है जो पर्यावरण की दृष्टि से उचित नहीं हैं। बैंक ऑफ इंग्लैंड के भूतपूर्व गवर्नर मार्क कार्नी इसके एक उदाहरण हैं। वे ग्लासगो फाइनेंशियल फॉर नेट जीरो यानि जी फैंज के संस्थापकों में से एक हैं। वे संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरण क्रियान्वयन और वित्त संस्थान के विशिष्ट दूत भी हैं। जी फैंज ने एक सख्त नियम बनाया है कि कोई भी बैंक जो उसका सहयोगी सदस्य है वह कोयले पर आधारित किसी भी परियोजना को धन नहीं देगा। परंतु क्या वर्तमान परिस्थितियों में ऐसा करना संभव है ? जन आलोचना के बचने के लिए अमेरिका की बड़ी बैंकों ने इस समूह से निकलने का मन बना लिया है। इसमें बैंक ऑफ अमेरिका, जे पी मोर्गन और मोर्गन स्टेनली शामिल हैं। समूह अपनी नीति में कुछ ढील देने की सोच रहा है। दूसरी तरफ कार्नी ब्रुकशील्ड एसेट मैनेजमेंट कंपनी के उपाध्यक्ष भी हैं जो कच्चे तेल वाहक जहाज बनाने वाली कंपनी की मुख्य वित्तीय सहायक है। तेल के उपयोग को पर्यावरण का बड़ा विनाशक माना जाता है परंतु ब्रुकफील्ड समूह इस लाभकारी निवेश से हटना नहीं चाहता। यह तो एक पक्ष है परंतु दूसरी तरफ ब्रुकफील्ड हरित योजनाओं में भी विश्व का अग्रणी वित्त निवेशक है। परिवर्तन के इस दौर में कई लोग विरोधाभाषी कार्य करते नजर आ सकते हैं। ऐसे लोगों की अत्यधिक आलोचना कोई सकारात्मक बात नहीं है। अभी हमें जो भी हरित प्रयास हैं उन्हे उत्साहित करना चाहिए और स्वयं अपने स्तर पर भी चाहे कितना भी तुच्छ क्यों न हो कोई ना कोई प्रयास करते रहना चाहिए जो वातावरण को बेहतर बनाता हो।

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